हिंदी दिवस पर हिंदी साहित्यकार के लिए गहरा दुःख दर्द , अशोक कुमार





राज्य ब्यूरो, अशोक कुमार - पटना। आज 14 सितंबर हिंदी दिवस के रूप में जाना जाता है। हिंदी साहित्य से संबंधित कई संगठनों एवं देश एवं प्रदेश के बहुतेरे संस्थानों में हिंदी पखवरा मनाया जाएगा। रेलवे विभाग, स्वास्थ्य विभाग,डाक विभाग ना जाने कितने विभाग इस पखवरे में साधारण सा हिंदी में बोलने एवं लिखने के लिए पुरस्कार तथा वेतन में वृद्धि की बात की जाएगी। आज हिंदी दिवस के रूप में एक ऐसे गुमनाम हिंदी साहित्यकार स्वर्गीय डॉक्टर प्रोफेसर कृष्ण नारायण प्रसाद मागध उपेक्षित हैं जो कल्पना से परे है। यह ऐसे साहित्यकार हैं जो साहित्य विधा में परिपूर्ण होते हुए भी बड़े-बड़े राजनेताओं, विधायकों तथा साहित्यकारों के नजरों से ओझल हैं। यह भारतीय विधि व्यवस्था तथा साहित्यकारों की विडंबना ही है कि इतने महान साहित्यकार जिन्होंने जीवन पर्यंत हिंदी साहित्य की सेवा करते हुए स्वर्गवास को प्राप्त हो गए किंतु न राज्य सरकार न केंद्र सरकार इन्हें एक साधारण सा गौरवशाली पुरस्कार पद्मश्री से नवाज सका। कहने को तो हर वर्ष पद्मश्री पुरस्कार बांटे जाते हैं किंतु सबसे बड़ी विडंबना है कि यह राजनीतिक लोगों के चाहते को ही मिलता है‌। वास्तव में अगर सही मायने में साहित्य के क्षेत्र में पद्मश्री की बात हो तो अब तक के जितने भी लोग चुने गए हैं उनमें सबसे ऊपर इनका नाम होना चाहिए किंतु ऐसा आज तक नहीं हुआ। इन्हें पद्मश्री देने की मांग विभिन्न मंचों से किया जाता रहा है किंतु अभी तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान इनके ऊपर नहीं पड़ा है।

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