सब का दुख दर्द व ख़ुशी में साथ देने वाली गृहिणीयां को कितना देते हम सम्मान




• सब का दुख दर्द व ख़ुशी में साथ देने वाली गृहिणीयां को कितना देते हम सम्मान..!!

• अनदेखी कई मोर्चों पर तकलीफदेह, इस उपेक्षा के चलते गृहिणियों में अवसाद और आत्महत्या..!!

• एक मां और पत्नी के रूप में उनका योगदान अमूल्य..!

सब का दुख दर्द व ख़ुशी में साथ देने वाली गृहिणीयां घर संभालने के साथ साथ सभी का ध्यान रखती है इतना करने के बावजूद गृहिणी खुद की पहचान नहीं बना पाती और उसकी जिंदगी घर की चहारदीवारी में सिमट कर रह जाती है!अनगिनत जिम्मेदारियां निभाने वाली गृहिणी की पारिवारिक सामाजिक और आर्थिक भागीदारी की अनदेखी कई मोर्चों पर तकलीफदेह है इस उपेक्षा के चलते गृहिणियों में अवसाद और आत्महत्या के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं!उनके श्रम और सहभागिता को मान न मिलना अपराधबोध को भी जन्म देता है! नतीजतन बहुत सी शारीरिक मानसिक व्याधियां भी उन्हें घेर लेती हैं घरेलू मोर्चे पर सब कुछ संभालने के बावजूद महिलाओं को कुछ न करने वाली भूमिका में देखा जाना हमारे यहां आम बात है! घर की जिम्मेदारियां संभालने वाली इन महिलाओं की आय को मौद्रिक रूप में न आंके जाने के कारण उनकी आपाधापी और योगदान को जरा कम करके ही देखा जाता है सामाजिक पारिवारिक बर्ताव से लेकर महिलाओं के लिए बनने वाली नीतियों और योजनाओं की रूपरेखा तक पर उन्हें कमतर समझने की इस सोच का असर साफ दिखता है! तभी तो गृहिणियों के लिए कहीं कोई विशेष प्रावधान नजर नहीं आता! जबकि गृहिणियां अपने से ज्यादा प्राथमिकता अपनों और अपने से जुड़े संबंधों को देती हैं! ऐसे में गृहिणी की भूमिका पर केरल के एक न्यायाधीश का यह कहना कि एक मां और पत्नी के रूप में उनका योगदान अमूल्य है वाकई विचारणीय है! इसका सीधा संदेश यही है कि महिलाओं की आम सी लगने वाली इस भूमिका को खास नजरिए से समझा जाना आवश्यक है गृहिणी के रूप में एक महिला की भूमिका एक परिवार में सबसे महत्त्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण होती है!वास्तव में वह भावनात्मक रूप से परिवार को एक साथ रखती है वह घर में पति का सहयोग करने वाला एक स्तंभ अपने बच्चों के लिए एक मार्गदर्शक और परिवार के बुजुर्गों के लिए आश्रय की तरह होती है वह एक दिन की भी छुट्टी लिए बिना दिन रात काम करती है भले वह कामकाजी महिला हो या न हो हालांकि वह जो काम करती है उसकी कोई सराहना नहीं होती और उसे नौकरी नहीं माना जाता है एक महिला द्वारा घर में दी जाने वाली सेवाओं को मौद्रिक दृष्टि से गिनना एक असंभव कार्य है जो सैकड़ों घटकों से मिलकर बने होते है! कोरोना काल में गृहिणियों द्वारा न केवल अपनों बल्कि आस पड़ोस के लोगों तक भी मदद पहुंचाने के कई उदाहरण सामने आए थे! घर तक सिमटी जिंदगी के तकलीफदेह दौर में भी घरेलू महिलाओं ने हर आपाधापी से जूझते हुए अपनों को संभाला था!घर तक सिमटी जिंदगी जी रही महिलाओं की मन:स्थिति समझने का परिवेश बनाने की दरकार है!सबके मन को समझने वाली महिलाओं के लिए भी समाज और परिवार का संबल आवश्यक है यही वजह है कि ऐसे न्यायिक निर्णय समाज के लिए अहम संदेश लिए होते हैं! नए विमर्श को जन्म देते हैं।

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