ग़रीबों की गंदगी तो साबुन या झाड़ू से साफ़ हो जाएगी मगर सभ्य समाज की गंदगी दूर करने के लिए क्या कोई कार्यविधि है

फाइल फोटो,कलीमुल हाफिज


• ‘तालीम के यह नतीजे हमने सोचे ना थे’

• ग़रीबों की गंदगी तो साबुन या झाड़ू से साफ़ हो जाएगी मगर सभ्य समाज की गंदगी दूर करने के लिए क्या कोई कार्यविधि है?

कलीमुल हफ़ीज़, नई दिल्ली

हम ही क्या दुनिया के तमाम पढ़े लिखे और विचारकों, समाज सुधाराकों और बुद्धिजीवियों की राय है कि तालीम समाज में खुशहाली लाती है और इसके माध्यम से इंसान सभ्य बनता है। तालीम के नैतिक, आर्थिक और सामाजिक लाभों से वाक़िफ़ कराने वाला बहुत सारा लिटरेचर मौजूद है। हर व्यक्ति की ज़बान पर है कि तालीम हासिल कर लोगे तो तुम्हारी सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। लेकिन आज जब मैं अपने देश के हालात का जायज़ा लेता हूँ तो मुझे लगता है कि हमारे यहां तालीम के उल्टे परिणाम ज़्यादा आए हैं।

देश में इस वक्त हिंदू मुस्लिम नफ़रत का जो ज़हर फैलाया जा रहा है वह शिक्षित वर्ग के माध्यम से ही फैलाया जा रहा है। धर्म संसद में मुसलमानों को मारने और उनकी हत्या करने की धमकियाँ केवल शिक्षित वर्ग की तरफ़ से नहीं दी जा रही हैं बल्कि वह वर्ग धार्मिक शिक्षा भी लिए हुए है। एक साधु महाराज ने तो मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार करने पर भी अपने भक्तों को उभारा था यानी धर्म जो जानवर को इंसान बनाता है उसके ज्ञानी हमारे देश में ख़ुद जानवर बन गए हैं।

• टीवी चैनलों पर होने वाली डिबेट में शरीक होने वाले लोग बुद्धिजीवी होते हैं, वह अपनी पार्टी तथा समाज की नुमाइंदगी करते हैं, लेकिन आप देखते हैं की वह कैसी भाषा का प्रयोग करते हैं, किस तरह समाज को विभाजित करते हैं, ख़ुद टीवी एंकर का रोल न्याय के विरुद्ध होता है।

देश को लूटने वालों में भी शिक्षित लोग ज़्यादा हैं, देश में जितने बड़े घोटाले हुए वह किसी अनपढ़ ग़रीब ने नहीं किए थे। बल्कि सारे घोटाले सत्ताधारी और और उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों ने किए थे। जिस समाज में एक रोटी चुराने पर किसी ग़रीब की जान ले ली जाती है, मोहल्ले में किसी की मुर्ग़ी चुराने पर चोर को मारा जाता है, उसी समाज में दर्जनों घोटाले होते हैं और घोटाला करने वाले सभ्य बने रहते हैं।

मुल्क के प्रसिद्ध घोटालों में बोफ़ोर्स घोटाला 64 करोड़, यूरिया घोटाला 133 करोड़, चारा घोटाला 950 करोड़, स्टॉक मार्केट घोटाला 4000 करोड़, सत्यम घोटाला 7000 करोड़, स्टांप पेपर स्कॉम 43 हजार करोड़, कॉमनवेल्थ गेम घोटाला 70 हजार करोड़, 2G स्कैंडल 167000 करोड़, अनाज घोटाला लगभग दो लाख करोड़, कोयला घोटाला 12 लाख करोड़, राफेल घोटाला 7000 करोड़, जरा सोचिए इन घोटालों की कुल रकम से कितने गरीबों का भला होता इसी तरह बैंक से अरबों रुपए का लोन लेकर देश से भागने वाले लोग भी शिक्षित ही हैं।

शिक्षित लोगों के हाथों यह करप्शन जीवन के हर विभाग में हुआ तथा हो रहा है। फ़ौज में भी कई प्रकार के घोटाले हुए यहां तक कि ताबूत घोटाला सामने आया। फ़र्ज़ी डिग्रियां लेकर नौकरी हासिल करने के मामले फ़ौज और अन्य महकमों में सुनने को मिलते रहते हैं। मीडिया के साथ करप्ट का शब्द हमेशा के लिए जुड़ गया है। करप्ट मीडिया और करप्ट नेताओं ने मिलकर करप्शन का नया इतिहास लिखा है। जितने बड़े मीडिया हाउस हैं वह सब धनवान लोगों के कंट्रोल में हैं। पत्रकारिता की आज़ादी ख़त्म हो चुकी है, वह पत्रकार जो अपने मन की आवाज़ पर रिपोर्टिंग करते हैं ख़त्म कर दिए जाते हैं, यह हत्यारे शिक्षित होते हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में भी कई प्रकार से पतन हुआ, जहां एक तरफ़ मोटा मोटा वेतन लेकर भी सरकारी अध्यापक पढ़ाने के अलावा सारे काम करते हैं। ख़ासतौर पर प्राइमरी शिक्षा का निज़ाम तो चौपट नगरी चौपट राजा का दृश्य पेश करता है। वहीं दूसरी ओर अधिकतर प्राइवेट स्कूलों ने ख़ुद को कमर्शियल बना लिया है। शिक्षा महंगी हो गई, शिक्षा में इन्वेस्टमेंट बढ़ गया, अब शिक्षा मुकम्मल करने के बाद उस इन्वेस्टमेंट को कैश भी करना था इसलिए क्या डॉक्टर क्या इंजीनियर सबने दोनों हाथों से जनता को लूटा है। राजनीति के क्षेत्र में हर इंसान ख़ुद को जनता और देश का सेवक कहता है। स्टेज पर जनता की सेवा की दुहाई दी जाती है, चुनाव के समय जनता का सेवक हाथ जोड़कर वोट मांगता है, चुनाव पर जो पैसा ख़र्च किया जाता है वह भी एक प्रकार का इन्वेस्टमेंट ही होता है जिसे ब्याज के साथ हासिल किया जाता है। अधिकतर राजनेताओं की दौलत में प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है, जनता ग़रीब से ग़रीबतर होती जा रही है और नेता अमीर से अमीर तर हो रहे हैं।

न्यायालय जिसका काम ही न्याय करना था वहां भी घोटालों ने अपना स्थान बना लिया है। कुछ वकीलों के बारे में मशहूर होता है कि वह कोई मुक़दमा नहीं हारते, उनके पास जाओगे तो ज़मानत मिल ही जाएगी। विश्वास की यह कैफ़ियत इसलिए है कि उस वकील के ताल्लुक़ात जज साहब से बहुत अच्छे हैं। जिनकी बुनियाद पर वह अपने काम निकाल लेता है। न्यायालयों में पैसे के हेरफेर के साथ ही सत्ता के दबाव में कार्य करने का करप्शन भी है।

• जज साहब सरकार के इशारों पर काम करते हैं देश में बाबरी मस्जिद का ऐतिहासिक फ़ैसला उसकी मिसाल है। कुछ लोगों की राय है कि इस फैसले को करने वाले जज महोदय को फ़ैसला करने के बदले राज्यसभा की सदस्यता दी गई। क़ातिल के बदले मक़तूल को सज़ा मिलने के क़िस्से आए दिन सामने आते रहते हैं।

यह करप्शन केवल आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने वालों में ही नहीं है बल्कि धार्मिक वर्ग में भी कई प्रकार का करप्शन है। जिसमें सबसे बड़ा करप्शन यह है कि उन्होंने धर्म की शिक्षाओं को अपने मन की इच्छा अनुसार पेश किया। ख़ुदा के नियमों को बदल डाला, जिससे इंसानी समाज में धर्मों के बीच दुश्मनी का रिश्ता बन गया। ख़ुद अपने समाज में कई प्रकार के मत तथा मसलक बन गए, आज हाल यह है कि इस्लाम जो अल्लाह का सीधा व सच्चा दीन है उसको समझना भी बहुत मुश्किल है। ग़ैरमुस्लिमों को तो छोड़िए ख़ुद मुस्लिम नौजवान मुल्लाओं के इस्लाम से पनाह मांगते हैं। इसके अलावा धार्मिक संस्थानों में आर्थिक करप्शन भी पाया जाता है।



मैं यह नहीं कहता की तमाम शिक्षित लोग करप्ट हैं, लेकिन ऊपर जो मैंने लिखा वह भी हमारे समाज का आईना है। एक अच्छी ख़ासी संख्या करप्शन में शामिल है। अगरचे जितने अच्छे लोग हैं वह भी शिक्षित ही हैं, शिक्षा का प्रचार करने वालों ने कभी सोचा ना था कि इसके इतने भयानक परिणाम निकलेंगे। पुराने ज़माने के चोर अनपढ़ थे, कूमल लगाते थे, उसके बाद बंदूक़ की नोक पर डाका डालने लगे। मगर अब शिक्षा की वजह से अकाउंट ही हैक कर लेते हैं और एक क्लिक पर लाखों की रकम अपने अकाउंट में ट्रांसफर कर लेते हैं। पासवर्ड और ईमेल आईडी हैक करके ब्लैकमेल किया जाने लगा, ऐप के द्वारा अनैतिक तस्वीरें अपलोड करके सभ्यता का जनाज़ा निकाला जाता है।

शिक्षा के हानिकारक तथा ग़लत प्रभाव देखकर सोचता हूँ कि वह ज़माना कितना अच्छा था जब हम पढ़े लिखे तो न थे लेकिन सच्चे व ईमानदार थे। बड़े-बड़े व्यापार ज़ुबान पर हो जाते थे, कोई बेईमानी ना होती थी, जब पढ़े-लिखे जज तो ना थे लेकिन गांव के पंच परमेश्वर का स्थान रखते थे और न्याय करते थे। जब गांव की बेटी सब की बेटी थी, जब होली दिवाली और ईद सब मिलकर मनाते थे, त्यौहार आने पर सब ख़ुश होते थे, जब अर्थी और जनाज़े में कोई भेद नहीं था, जब अज़ान की आवाज़ सुनकर दूसरी आवाज़ें बंद हो जाती थीं, जब मंदिर की रामलीला में अब्दुल भी राम का रोल करता था, जब गांव का छप्पर उठाने के लिए हिंदू मुसलमान एक साथ ज़ोर लगाते थे, काश वो दिन वापस हो जाते…!

शिक्षा के बारे में यह बातें लिखने का मक़सद यह नहीं है कि शिक्षा प्राप्त न की जाए, स्कूल कॉलेज स्थापित न किए जाएं, बल्कि मैं चाहता हूं कि आप शिक्षा के उद्देश्य पर भी नज़र रखें और नैतिक शिक्षा को अपनी शिक्षा प्रणाली का अनिवार्य भाग बनाएं। शिक्षित वर्ग को यह देखना चाहिए कि उसके द्वारा मानव समाज में किसी प्रकार का करप्शन और अनैतिकता तो नहीं बढ़ रही है। अक्सर उच्च शिक्षित वर्ग अनपढ़ लोगों को हीन समझता है, उनकी गंदगी से घिन खाता है लेकिन इन सभ्य लोगों को उस गंदगी पर भी नज़र डालनी चाहिए जो इनके द्वारा समाज में फैल रही है। ग़रीबों की गंदगी तो साबुन या झाड़ू से साफ़ हो जाएगी मगर सभ्य समाज की गंदगी को दूर करने के लिए क्या कोई कार्यप्रणाली है?

कलीमुल हफ़ीज़, नई दिल्ली

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