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लुधियाना, (राजकुमार शर्मा)। एस.एस.जैन नूरवाला जैन सभा चतुर्मास पर धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए गुरुदेव श्री अनुपम मुनि जी महाराज ने कहा कि अहिंसा धर्म में अपने आप को स्थिर करना संयम है, अपने आप को बुराई से दूर कर अच्छाई में करना संयम है। पाप का परित्याग धर्म को स्वीकार करना संयम है, क्रोध का विसर्जन कर क्षमा को धारण करना संयम है। पृथ्वी की रक्षा, पानी की रक्षा, अग्नि की रक्षा, वायु की रक्षा और वनस्पति की रक्षा तथा चलने फिरने वाले प्राणियों की रक्षा करना मन वचन और काया की ऊर्जा को शिक्षित करना, उपेक्षा होने पर अपने आपको अस्तित्व की रक्षा करना, दूसरे की वस्तुओं की रक्षा करना ही संयम है। गुरुदेव श्री अनुपम मुनि जी ने आगे कहा कि अपनी इच्छाओं पर काबू नियंत्रण करना संयम है। हमें अपने कर्तव्य को नियंत्रण एवं अनुशासित होकर पूरा करना चाहिए। संत गुरुदेव श्री मुनि जी की प्रेरणा से नूरवाला जैन सभा में जैन महामृत्युंजय का पाठ दोपहर 3 से 4 बजे तक एंव रात 9 से 10 बजे तक होता है। जो सभी बाधाओं को दूर करके सुख शांति प्रदान करता है। मुनि श्री जी ने आगे कहा कि चातृर्मास में धर्म का ध्यान अधिक करना चाहिए, ताकि हमारे जीवन का कल्याण हो सके। उन्होंने कहा कि घृणा भाव में होती है और घृणा भाव का त्याग करो मैत्री एवं प्रेमभाव में अहिंसा होती है जहां प्रेम भाव है वहां अहिंसा का जन्म होता है। प्रेम भाव में अहिंसा विकसित होती है। प्रेम से परिवार समाज और राष्ट्र एवं धर्म का विकास भी होता है।