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नई दिल्ली: भारत सरकार ने अपनी तीनों सैन्य शाखाओं में भर्ती के लिए एक नई योजना अग्निपथ लागू की है। इसके अंतर्गत चार वर्षों के लिए जवान सेना में शामिल होंगे और उन्हें अग्निवीर के नाम से पहचाना जायेगा। जिस दिन से इस योजना की सार्वजनिक घोषणा की गयी है, उसी दिन से देशभर में सड़कों पर हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। सरकारी हो चाहे निजी - हर तरह की संपत्तियों को जबरन नुकसान पहुचांया जा रहा है
कुछ विपक्षी राजनैतिक दलों की तरफ से योजना को लेकर संशय भी पैदा किया गया है, जैसे अग्निवीरों का चार साल बाद क्या होगा? उन्हें अनुबंध/संविदा (कांट्रेक्ट) पर क्यों रखा जा रहा है? पेंशन की क्या व्यवस्था रहेगी? चार सालों में क्या यह सभी कुशल सैनिक बन पाएंगे? और कहीं यह अग्निवीर अपनी सेवाएं समाप्त होने के बाद भारत की सुरक्षा के लिए ही खतरा न पैदा हो जाये? इत्यादि।
आमतौर पर आशंका तो किसी भी बात पर व्यक्त की जा सकती है। मगर उसे अराजक हिंसक हमलों में तब्दील करना लोकतांत्रिक नहीं है। किसी भी आशंका के समाधान के लिए संसद है, वहां इसपर व्यापक बातचीत की जा सकती है। इस तथ्य को एक उदाहरण के माध्यम से भी समझा जा सकता है। बात 23 दिसंबर 2004 की है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को केंद्र में कुछ ही महीने हुए थे। लोकसभा में भाजपा के सदस्य फग्गन सिंह कुलस्ते ने तत्कालीन रक्षा मंत्री, प्रणब मुखर्जी से एक आशंका भरा प्रश्न पूछा, "क्या रक्षा जैसे अतिमहत्व के मंत्रालयों में संविदा पर कार्यरत कर्मियों से मंत्रालय की गोपनीयता खतरे में नहीं पड़ जाएगी?"
अब दोहरापन देखिये कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब 2014 में अपनी सरकार के 10 सालों का लेखा-जोखा पेश किया तो इन्ही अनुबंध पर आधारित नौकरियों के आंकड़े देकर अपनी सरकार की खूब पीठ थपथपाई थी। इकॉनोमिक टाइम्स की 16 जनवरी 2014 की एक खबर के अनुसार, 2009-10 और 2011-12 में यूपीए सरकार ने औपचारिक क्षेत्र में 17 मिलियन नए रोजगारों का सृजन किया लेकिन उनमें किसी भी प्रकार का रोजगार लाभ और सामाजिक सुरक्षा नहीं प्रदान की गयी थी।
मनमोहन सरकार की इसी एक नीति से यूपीए -1 में बेराजगारी का आंकड़ा जो 8.4 प्रतिशत था वह 2011-12 में एकदम 5.6 हो गया। तब यूपीए के दोनों कार्यकालों में लगभग वही सब राजनीतिक दल कांग्रेस के सहयोगी थे जो आज विपक्ष में है। तब उन 10 सालों में किसी ने विरोध नहीं किया और आज युवाओं को भड़काने के लिए इन सभी राजनीतिक दलों को अचानक अग्निवीरों की चिंता सताने लगी है।
अब बार-बार कहा जा रहा है कि इन अग्निवीरों को पेंशन यानि भविष्य में आर्थिक सुरक्षा नहीं मिलेगी। वैसे तो अग्निपथ योजना में चार साल बाद एकमुश्त राशि देने का प्रावधान है। लेकिन सेना में पेंशन की एक वास्तविकता को समझने की जरुरत है। इसके लिए फिर से यूपीए के दौर में जाने की जरुरत है। दरअसल, कांग्रेस के टिकट पर पश्चिमी दिल्ली से 15वीं लोकसभा के निर्वाचित सदस्य महाबल मिश्रा ने 26 अगस्त 2013 को अपनी ही सरकार से एक प्रश्न किया, "क्या सरकार उन अधिकारियों और अन्य रैंक के कर्मियों को भी पेंशन प्रदान करने पर विचार कर रही है, जिन्होंने सेना में दस साल से कम सेवा की है
इस पर यूपीए सरकार का जवाब था, "सरकार में पेंशन के लिए न्यूनतम अर्हक (Qualifying) सेवा एक अनिवार्य मानदंड है। मौजूदा नियमों के अनुसार, सेवा पेंशन प्राप्त करने के लिए आवश्यक न्यूनतम अर्हक सेवा कमीशन अधिकारियों के लिए 20 वर्ष और अधिकारी रैंक से नीचे के कार्मिकों के लिए 15 वर्ष है। वर्तमान में सरकार द्वारा सेवा पेंशन अर्जित करने के लिए अर्हक सेवा के वर्षों की संख्या कम करने के लिए कोई परिवर्तन करने पर विचार नहीं किया गया है।" तब यूपीए सरकार ने उन सभी सैन्य कर्मियों को राहत क्यों नहीं दी जो कि 10 वर्षों तक सेना में अपनी सेवाएं दे चुके थे। जबकि उन्ही के दल का का सांसद इस बात को लेकर बेहद चिंतित था। फिर भी मनमोहन सिंह सरकार ने इसबात पर कोई ध्यान नहीं दिया।
वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में इस नियम में परिवर्तन किया गया। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर बताया कि सशस्त्र बलों के जवानों के लिए अशक्त (Invalid) पेंशन की योग्यता के लिए 10 वर्ष अथवा उससे ज्यादा की सेवाओं की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया है। अब यह अशक्त पेंशन सशस्त्र बलों के उन कर्मियों को भी मिल सकेगी, जिन्होंने सेना को 10 वर्ष से कम अपनी सेवाएं दी है।
The Government has taken a decision to allow Invalid Pension to Armed Forces Personnel with less than 10 years of qualifying service. Invalid pension is granted to the Armed Forces Personnel who is invalided out of service on account of disability.
— रक्षा मंत्री कार्यालय/ RMO India (@DefenceMinIndia) July 15, 2020
अतः इन उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए युवाओं को आशंकाओं से परे वास्तविकता को समझने की जरुरत है। जब कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को अपनी सरकार की किरकरी होने से बचाना था तो उन्होंने अनुबंध आधारित खूब नौकरियां बांटी लेकिन आज वे अपने ही बनाये नियम का विरोध कर रहे है। और जब वास्तव में सैन्य सेवाओं की पेंशन में बदलाव की जरुरत महसूस की गयी तो उसपर कोई विचार ही नहीं किया था।
जवाब में रक्षा मंत्री ने कहा, "रक्षा मंत्रालय के तहत विभिन्न कार्यालयों में कार्यों को करने के लिए अनुबंध के आधार पर कर्मियों को नियुक्त किया जा रहा है, जो बारहमासी और महत्वपूर्ण प्रकृति के नहीं हैं। ऐसे किसी भी कर्मचारी को किसी काम में लगाने से पहले सुरक्षा संबंधी सभी सावधानियां बरती जाती हैं।" यह बात यही समाप्त हो गयी। न कोई अराजकता हुई, न आगजनी और न ही सरकार को धारा 144 का प्रयोग करना पड़ा। जबकि केंद्रीय रक्षा मंत्री ने सार्वजनिक रूप से अनुबंध आधारित नौकरियों की बात कही थी।
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