भरत सिंह की रिपोर्ट
नई दिल्ली, दिल्ली में अप्रैल-मई में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने काफी ज्यादा कोहराम मचाया। अस्पतालों में बेड की कमी, ऑक्सीजन की किल्लत के कारण कोरोनो मरीजों ने सड़कों पर दम तोड़ा है। खौक का जो नजारा दिल्ली को कोरोना ने दिखाया था, दिल्ली ने इतना दर्द कभी नहीं देखा था। शमशान घाट पर लाशे जलाने के लिए 28-29 घंटे इंतजार किया गया। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महापौर जय प्रकाश ने निगम के आंकड़ों का हवाला देते हुए मंगलवार को दावा किया कि मई के महीने में कोविड प्रोटोकॉल के तहत 9,300 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया गया जोकि पिछले साल महामारी की शुरुआत के बाद इस महीने सबसे अधिक संख्या रही। आंकड़ों के मुताबिक, मई महीने में हर दिन करीब 300 कोविड मरीजों का अंतिम संस्कार किया गया। प्रकाश ने कहा कि तीनों नगर निगमों के आंकड़ों पर नजर डालें तो कोविड-19 के करीब 9,150 मरीजों की अंत्येष्टि के मामले में अप्रैल दूसरा सबसे खराब महीना साबित हुआ। आपको बता दें राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि 29 मई तक राज्यों की ओर से प्रदान किए गए डेटा के मुताबिक 9346 ऐसे बच्चें है जो कोरोना महामारी के कारण बेसहारा और अनाथ हो गए हैं या फिर अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है। न्यायमूर्ति एल एन राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ के समक्ष पेश एक अलग नोट में महाराष्ट्र सरकार कहा कि 30 मई तक राज्य के विभिन्न इलाकों से मिली जानकारी के अनुसार 4,451 बच्चों ने अपने माता-पिता में से एक को खो दिया है तथा 141 ऐसे बच्चे हैं जिनके माता-पिता दोनों की मौत हो गई। एनसीपीसीआर ने वकील स्वरूपमा चतुर्वेदी के जरिए दायर हलफनामे में कहा कि ऐसे सबसे ज्यादा 2110 बच्चे उत्तर प्रदेश में हैं। इसके साथ ही बिहार में 1327, केरल में 952 और मध्य प्रदेश में 712 बच्चे कोरोना महामारी के कारण अनाथ हो गए या फिर माता-पिता में से किसी एक को खो दिया। देश की सबसे बड़ी अदालत ने राज्य सरकारों से कहा कि वे सात जून तक एनसीपीसीआर की वेबसाइट ‘बाल स्वराज’ पर डेटा अपलोड करें और कोरोना वायरस संक्रमण के कारण प्रभावित हुए बच्चों से जुड़ा विवरण उपलब्ध कराएं। उच्चतम न्यायालय बाल गृहों में कोविड फैलने पर स्वत: संज्ञान लेने से जुड़े एक मामले में सुनवाई कर रहा है।