गाजियाबाद विजय नगर स्थित प्रताप विहार में एक व्यक्ति के सिर में 20 की सरिया आर-पार हो गई। डॉक्टरों के घंटों सर्जरी के बाद मरीज को मिला जीवनदान



Seemanchal Express Bureau Uttar Pradesh 
Sanjay Kumar Choudhry 
.गाजियाबाद विजय नगर
.जाको राखे साइयां मार सके ना कोई
 
.गाजियाबाद विजय नगर स्थित प्रताप विहार में एक व्यक्ति के सिर में 20 की सरिया आर-पार हो गई। डॉक्टरों के घंटों सर्जरी के बाद मरीज को मिला जीवनदान
संजय कुमार चौधरी 
गाजियाबाद। अक्सर लोगों ने एक कहावत सुनी होगी की बड़ा पत्थर दिल इंसान है। लेकिन अगर यह कहावत चरितार्थ हो जाए तो सुनकर बड़ी हैरानी होगी। दरअसल जनपद में एक ऐसा मामला सामने आया जहां एक व्यक्ति के सिर से 20 फीट का सरिया आर-पार हो गया। जिसे धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों ने फिर एक करिश्मा कर दिखाया है। घंटो चले ऑपरेशन के बाद मरीज को जीवनदान दे दिया।
24 वर्षीय मजदूर रमेश कुमार मूल रूप से झारखंड का निवासी है। जो प्रताप विहार गाजियाबाद में एक निर्माण स्थल पर मजदूरी का कार्य करता है। प्रतिदिन की तरह उसने अपना काम शुरू किया। वह नहीं जानता था कि उसके साथ क्या होने वाला है। जब दूसरे मजदूर इमारत की 20वीं मंजिल की छत खोल रहे थे, तभी वह उस इमारत के पास से गुजर रहा था। इस दौरान अचानक 20 फीट लंबा लोहे का सरिया आ गिरा। साथी मजदूर रमेश को वहां से हटने और दूसरी जगह जाने के लिए चिल्ला रहे थे। रमेश ने तुरंत प्रतिक्रिया देकर ऊपर की ओर देखा, मगर उसे बचने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया। 
20 फीट का वह सरिया एक तीर की तरह उसके सिर को चीरकर निकल गया, उसके दोनों सिरे आगे और पीछे दिखाई दे रहे थे। लोग उसकी मदद के लिए दौड़े और सरिए को आगे-पीछे से काटने के बाद तुरंत उसे फ्लोरेस अस्पताल ले गए। 
फ्लोरेस अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एम.के. सिंह और डॉ. गौरव गुप्ता ने बताया कि जब रमेश को अस्पताल लाया गया तब उसकी हालत ठीक नहीं लग रही थी। 
उसके सिर में अभी भी 12 मिली मीटर का सरिया फंसा था, जो सिर के आगे-पीछे से दिखाई दे रहा था। उसकी तुरंत कुछ जरूरी जांच कराई गई और अस्पताल के न्यूरोसर्जन डॉ. अभिनव गुप्ता और डॉ. गौरव गुप्ता ने सरिए को निकालने के लिए मैराथन सर्जरी की और मरीज को एक नया जीवन दिया। फ्लोरेस अस्पताल के न्यूरोसर्जन डॉ. अभिनव गुप्ता कहते हैं कि 20 साल के उनके न्यूरो सर्जरी करियर में यह अपनी तरह का पहला मामला था। 4 घंटे तक चली यह सर्जरी काफी चुनौतीपूर्ण थी। सबसे पहले सरिये को हड्डी से अलग करने के लिए खोपड़ी का आधा भाग खोलना पड़ा। सबसे बड़ी चुनौती मस्तिष्क से लोहे की छड़ को बिना कोई और नुकसान पहुंचाए निकालना था, जो सफलता पूर्वक कर लिया गया। हड्डी को जीवनक्षम बनाए रखने के लिए पेट की दीवार की त्वचा के नीचे रखा गया। उन्होंने बताया कि मरीज की बड़ी सावधानीपूर्वक निगरानी की जा रही है।

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